कविता मनुष्य की मुक्ति का आख्यान है” – डॉ. श्रीप्रकाश शुक्ल
हज़ारीबाग:-विनोबा भावे विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग में कुलाधिपति व्याख्यानमाला के अंतर्गत “हमारा समय और कविता की भूमिका” विषय पर एक संगोष्ठी सह काव्य पाठ का आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्रख्यात आलोचक, कवि एवं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. श्रीप्रकाश शुक्ल ने मुख्य वक्ता के रूप में भाग लिया। कार्यक्रम में डॉ. सत्यनारायण टंडन (सेवानिवृत्त प्राध्यापक, बी.बी.एम.के.यू.), डॉ. बलदेव राम (प्राचार्य, बरकट्ठा महाविद्यालय), डॉ. जयप्रकाश रविदास (प्राचार्य, बरही महाविद्यालय) तथा विभाग के प्राध्यापकगणों की गरिमामयी उपस्थिति रही।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्ण कुमार गुप्ता ने अपने संबोधन में कहा, “समय के साथ कविता की भूमिका बदलती है, लेकिन उसके मूल में मनुष्य और मनुष्यता का सरोकार बना रहना चाहिए।”
प्राध्यापक डॉ. सुबोध कुमार सिंह ने साहित्य और समय के अंतर्संबंध पर चर्चा करते हुए कहा, “साहित्य समय का, समय के लिए और समय के द्वारा रचा गया यथार्थ है।”
मुख्य वक्ता डॉ. श्रीप्रकाश शुक्ल ने अपने व्याख्यान में कहा, “कविता आत्मबोध एवं आत्मसंस्कृति से जोड़ती है। यह मनुष्य की मुक्ति का साधन बनते हुए समय के सत्य को उद्घाटित करती है। कविता ने हाशिये के समाज को आवाज दी है और उपेक्षित वर्गों की चेतना को स्वर प्रदान किया है।” उन्होंने कहा कि “जितने अधिक कवि समाज में होंगे, तनाव उतना ही कम होगा। कविता संवादधर्मी विधा है जो सामूहिकता में संवाद करती है।”
उन्होंने अपनी नयी काव्यकृति “झुकना किसी को रोकना है” से चुनिंदा कविताओं का पाठ भी किया, जिसे श्रोताओं ने सराहना के साथ सुना।
कार्यक्रम का स्वागत भाषण डॉ. सुनील कुमार दुबे ने प्रस्तुत किया। डॉ. केदार सिंह ने काव्य की प्रासंगिकता पर संक्षिप्त वृतचित्र प्रस्तुत करते हुए अतिथियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। मंच संचालन डॉ. राजू राम ने किया जबकि स्वागत गीत की प्रस्तुति विद्यार्थियों मानसी कुमारी एवं पूर्वी उषा द्वारा की गई।
इस अवसर पर शोधार्थियों सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थियों की सक्रिय एवं उत्साही उपस्थिति रही, जिससे कार्यक्रम और अधिक सार्थक बन गया।
Author: Ashish Yadav
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