मुख्यमंत्री दाल-भात योजना: हजारीबाग में अनियमितताओं की पोल खुली, जांच हुई तो सामने आ सकता है सबसे बड़ा घोटाला।
हजारीबाग:- गरीबों को मात्र 5 रुपये में भरपेट भोजन देने के उद्देश्य से झारखंड सरकार द्वारा शुरू की गई मुख्यमंत्री दाल-भात योजना आज खुद कुपोषण का शिकार होती नजर आ रही है। खासकर हजारीबाग जिले में इस योजना की जमीनी हकीकत बेहद चौंकाने वाली है। अनियमितताओं की परतें इतनी गहराई से जमी हुई हैं कि अगर इसकी निष्पक्ष जांच हो, तो यह राज्य का सबसे बड़ा घोटाला बन सकता है।
गंदगी और अव्यवस्था से चल रही योजना।
योजना के तहत गरीबों को शुद्ध, स्वादिष्ट और पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध कराना था। लेकिन हजारीबाग के कई केंद्रों पर हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। गंदगी से भरे परिसरों में भोजन परोसा जा रहा है, पीने का पानी टूटी बाल्टियों और गंदे जंग लगे जगों में दिया जा रहा है। कहीं कोई निगरानी नहीं, कहीं कोई उत्तरदायित्व नहीं।
फर्जी लाभुकों की भरमार, रजिस्टर बना दिखावा।राष्ट्रीय समाचार की जांच-पड़ताल में यह सामने आया है कि लाभुकों की लिस्ट फर्जी तरीके से तैयार की जा रही है। कई केंद्रों पर रजिस्टर में नाम तो दर्ज हैं, पर ना हस्ताक्षर हैं, ना अंगूठे के निशान। कई स्थानों पर महज 10-15 लोगों को भोजन परोसा जा रहा है, जबकि रजिस्टर में 300 से ज्यादा नाम दर्ज हैं। इन नामों के आधार पर केंद्र चावल, दाल और सोयाबीन का आवंटन ले रहे हैं।
सिर्फ दिखावे की निगरानी, ज़मीनी स्तर पर शून्य क्रियान्वयन!हजारीबाग जिले में इस योजना के अंतर्गत 22 केंद्र संचालित हो रहे हैं। इनमें से अधिकांश में एक जैसी अनियमितताएं पाई गई हैं। साफ-सफाई का नामोनिशान नहीं, खाने की गुणवत्ता संदिग्ध और निगरानी व्यवस्था पूरी तरह लचर। स्थानीय प्रशासन भी स्वीकार करता है कि प्रखंड स्तर पर योजना की मॉनिटरिंग नहीं हो रही है।
‘खाना खाना है तो खाओ, नहीं तो जाओ’ – संचालकों का रवैया!
कई केंद्रों में संचालिकाओं का व्यवहार भी गरीबों के प्रति असंवेदनशील है। शिकायत करने पर उन्हें धमकी दी जाती है, जिससे वे आवाज उठाने से डरते हैं। यह योजना, जो सम्मानपूर्वक भोजन देने के लिए बनाई गई थी, आज गरीबों की मजबूरी का मज़ाक बन चुकी है।
समाजसेवी की मांग – नियमित निरीक्षण जरूरी।
समाजसेवी मनोज गुप्ता, जिन्हें ‘मैंगो मैन’ के नाम से जाना जाता है, ने सवाल उठाया है कि जब फूड सेफ्टी ऑफिसर होटल और ढाबों का औचक निरीक्षण करते हैं, तो गरीबों के लिए संचालित इन केंद्रों को क्यों नजरअंदाज किया जा रहा है
Author: Ashish Yadav
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