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पितृ दिवस पर विशेष,जब पिता की निष्ठुर चुप्पी ने बेटे को दिया जीवन का सबसे बड़ा पाठ

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पितृ दिवस पर विशेष,जब पिता की निष्ठुर चुप्पी ने बेटे को दिया जीवन का सबसे बड़ा पाठ

“दुनिया कर रही थी पुत्र की प्रशंसा, पर पिता ने नहीं की एक बार भी सराहना… वजह जान बेटे की आँखों से बह निकले आंसू”:-रंजन चौधरी, सांसद मीडिया प्रतिनिधि, हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र

हज़ारीबाग़:-एक कर्मकांडी पिता के पुत्र ने देश के प्रतिष्ठित गुरुकुल से वैदिक शिक्षा प्राप्त कर जब घर वापसी की, तो पिता के शिष्यों के बीच उसने कर्मकांड का कार्य शुरू किया। कम उम्र में ही उसकी विद्वता की ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी। धीरे-धीरे उसका यश पिता से भी अधिक हो गया।लोग जहाँ पुत्र की प्रशंसा करते नहीं थकते थे, वहीं पिता हमेशा यही कहते, “अभी कुछ नहीं जानता…।” यहाँ तक कि परिवार में भी पिता बेटे की कोई सराहना नहीं करते। यह व्यवहार पुत्र को अंदर से तोड़ने लगा। एक ओर समाज की वाहवाही, दूसरी ओर पिता की चुप्पी – यह द्वंद्व उसके मन में घातक रूप लेने लगा।

पुत्र के मन में धीरे-धीरे ईर्ष्या ने घर कर लिया। उसे लगने लगा कि उसके सबसे बड़े दुश्मन कोई और नहीं, उसके अपने पिता ही हैं। और एक दिन, इस मानसिक अवस्था में उसने निर्णय ले लिया – पिता की हत्या कर देने का।रात्रि में तलवार लेकर वह पिता के कमरे के बाहर खड़ा हो गया। बस एक मौके की तलाश थी। उसी क्षण उसकी मां पिता से पूछ बैठती हैं – “आप कभी अपने बेटे की तारीफ क्यों नहीं करते?”
पिता का उत्तर सुनकर पुत्र के पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है। उन्होंने कहा –
“जब लोग मेरे बेटे की प्रशंसा करते हैं तो मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। लेकिन मैं नहीं चाहता कि वह यहीं रुक जाए। अगर मैं उसकी तारीफ करने लगूं, तो शायद वह संतुष्ट हो जाए और आगे बढ़ना छोड़ दे। मैं चाहता हूँ कि वह मुझसे भी बेहतर बने… इसलिए मैं उसकी प्रशंसा नहीं करता।”ये शब्द सुनकर पुत्र के हाथ से तलवार छूट जाती है। दरवाजा खुलते ही वह पिता के चरणों में गिरकर फूट-फूट कर रोने लगता है – “आज मैं सबसे बड़ा पाप करने जा रहा था पिता… माफ कर दीजिए!”
पिता उसे उठाकर सीने से लगा लेते हैं – और वहां एक ऐसा प्रेम प्रकट होता है, जो शब्दों में नहीं, केवल मौन में समझा जा सकता है।

सीख क्या है…..

पिता अपने सपनों और इच्छाओं को मारकर अपने पुत्र को ऊँचाइयों तक देखना चाहते हैं। वे बिना कहे अपने बच्चों की भलाई के लिए त्याग करते हैं। कई बार पिता की कठोरता उनके प्रेम की गहराई होती है, जिसे हम समझ नहीं पाते।
पिता वह शक्ति हैं, जो न तो अपनी थकान दिखाते हैं, न तकलीफ – लेकिन हमें कभी भी थमने नहीं देते।

Ashish Yadav

Author: Ashish Yadav

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