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108 एम्बुलेंस धूल फांक रही, मरीज भटक रहे — फतहा के जंगल में खड़ी हैं दर्जनों गाड़ियां!

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108 एम्बुलेंस धूल फांक रही, मरीज भटक रहे — फतहा के जंगल में खड़ी हैं दर्जनों गाड़ियां!

हजारीबाग:- एक ओर जहां झारखंड में कोरोना संक्रमण की आहट फिर से सुनाई दे रही है, वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य सेवाओं की ज़मीनी सच्चाई सरकारी दावों की पोल खोल रही है। हजारीबाग के फतहा जंगल में स्थित एक निजी गैराज में दर्जनों 108 निःशुल्क एम्बुलेंस की गाड़ियां महीनों से खड़ी धूल फांक रही हैं। ये वही गाड़ियां हैं, जिनका उपयोग आपात स्थिति में मरीजों को तत्काल अस्पताल पहुंचाने के लिए किया जाना चाहिए था।

गैराज के मिस्त्री से बातचीत में सामने आया कि ये सभी गाड़ियां ठेकेदार द्वारा मरम्मत के लिए भेजी गई थीं। छह गाड़ियां मरम्मत के बाद तैयार हो चुकी हैं, लेकिन ठेकेदार उन्हें वापस नहीं ले जा रहा। कारण है – सरकार द्वारा भुगतान में देरी। गैराज मालिक का साफ कहना है कि जब तक भुगतान नहीं होगा, वह कोई भी गाड़ी बाहर नहीं करेगा।

इधर दूसरी तरफ, आम लोग शिकायत कर रहे हैं कि 108 सेवा उपलब्ध नहीं हो रही, और उन्हें मजबूरी में महंगी प्राइवेट एम्बुलेंस लेनी पड़ रही है। ग्रामीण इलाकों से लगातार ऐसी शिकायतें सामने आ रही हैं जहां मरीजों ने एम्बुलेंस नहीं मिलने पर किराए की गाड़ी से अस्पताल पहुंचने की कोशिश की।

सरकार के दावे और जमीनी हकीकत में फर्क

राज्य सरकार और स्वास्थ्य मंत्री बार-बार दावा करते हैं कि 108 सेवा हर गांव और कस्बे तक मुफ्त में उपलब्ध है, लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट है। जिन गाड़ियों को सड़कों पर दौड़ना चाहिए था, वो गैराज में सड़ रही हैं।

हजारीबाग सांसद मनीष जायसवाल ने इस मुद्दे पर राज्य सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि यह स्थिति बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। “सरकार ‘मैया सम्मान योजना’ जैसी प्रचारात्मक योजनाओं में व्यस्त है, लेकिन 108 जैसी ज़रूरी सेवा उपेक्षित है,” उन्होंने कहा।

इस मामले में हजारीबाग के उपायुक्त ने भी चिंता जताई और जानकारी दी कि सिविल सर्जन से बात की गई है। प्रशासन का कहना है कि जल्द ही राशि का भुगतान कर गाड़ियों को वापस सेवा में लगाया जाएगा।

बड़ा सवाल: जब ज़रूरतमंद मरीज एम्बुलेंस के लिए भटक रहे हैं, तो दर्जनों गाड़ियां गैराज में क्यों सड़ रही हैं?यह पूरी स्थिति राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है। अगर सरकार की मुफ्त स्वास्थ्य सेवा योजना फाइलों में उलझी है और ज़रूरी संसाधन जमीनी स्तर पर नहीं पहुंच रहे, तो इसका सीधा असर उन गरीब मरीजों पर पड़ रहा है, जो इलाज के लिए एम्बुलेंस की आस में तड़पते हैं।

Ashish Yadav

Author: Ashish Yadav

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